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Ravi News
Wednesday, 4 December 2024, December 04, 2024 WIB
Last Updated 2024-12-05T00:55:31Z

कुई कुकदूर से बड़ी खबर अभी भी भटक रहे किसान कभी पंजीयन को लेकर तो कभी गिरदावरी ऐसे ही मामला सोन सिंह का है

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छत्तीसगढ़ की साय सरकार किसानों के धान का एक एक दाना खरीदने का वादा करती है लेकिन सरकारी सिस्टम ऐसा है जिसमें गरीब किसान पिसते रहता है और जब से कार्यप्रणाली का डिजिटाईलेशन हुआ है तब से कई समस्याएं सामने आ जाती है जिसे फिर चाहकर भी उच्च अधिकारी कुछ नहीं कर पाते और ऐसे सब में परेशानी और मुसीबत गरीब जनता को झेलनी पड़ती है क्योंकि सरकारी अमला हम कुछ नहीं कर सकते कह कर हाथ खडे़ कर देता है ऐसा ही एक मामला पंडरिया विकासखंड के वनाचंल कुई का सामने आया है जहां एक किसान सोनसिंह पिता तिलगाम अपने जिस खेत और पर्ची से सालों से अपनी मेहनत की फसल को बेचते आ रहा था और जिसके भरोषे उसने हजारों का कर्ज ले रखा है इस साल सरकारी सिस्टम और डिजिटाईलेशन के आगे बेबस नजर आ रहा है क्योंकि इस बार इस किसान का पंजीयन नहीं हो पा रहा है और ये सब वहां के पटवारी की लापरवाही के कारण हो रहा है । प्राप्त जानकारी के अनुसार पंडरिया विकासखंड के कुई के रहने वाले सोनसिंह अपने जिस खेत से सालों से धान बेचते आ रहे थे और जिस जमीन का उनके पास बकायदा पर्ची पट्टा है इस बार सरकारी पोर्टल पर उनकी उस जमीन को बड़े झाड़ का जंगल होने के कारण पंजीयन नहीं हो पा रहा है जिसके कारण अब सोनसिंह की मुसीबत बढ़ते जा रही है सोनसिंह ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि – इस बार मेरा पंजीयन नहीं हो पाने से मैं धान नहीं बेच पा रहा हूं जबकि उसी खसरे के बाकी किसानों का पंजीयन हो चुका है । मैने पटवारी से कई बार गिरदावरी करने के लिए कहा तो उसका कहना था कि उसने कर दिया है । कल पंजीयन का आखरी दिन था मैं सुबह से रात आठ बजे तक तहसील कार्यालय में बैठे रहा लेकिन मेरा पंजीयन नहीं हो पाया । पटवारी का ये भी कहना था कि मैने अपना आईडी तहसील कार्यालय में जमा कर दिया है । तहसील के बाबू लोगों को कुछ खर्चापानी दे दो तो वो लोग कर देंगे । मैने वहां के बाबू लोगों को दो तीन सौ रूपए भी दिया लेकिन मेरा काम नहीं हुआ ।

इस संबंध मे पटवारी हरी गुप्ता का कहना था कि उन्होंने सारा काम कर दिया है और फाईल तहसील में जमा कर दिया है अनुशंसा तहसील से होती है ।

इस संबंध में कुकदुर की नायाब तहसीदार पूजासिंह का कहना था कि – इस मामले की उन्हें जानकारी नहीं है कल तक तो पंजीयन हो रहा था मैं देखती हूं कहां दिक्कत हैं ।

बाद में उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की किसान से मिली और संबंधित कर्मचारियों से बात की लेकिन समाधान कुछ नहीं निकला क्योंकि आनलाईन में सोनसिंह के पास जो खेत के कागज और पर्ची थी और जिसमंे सोनसिंह पिछले कई साल से धान बेचते आ रहा था और जिस खसरे की छह हिस्सों में से एक हिस्सा उसका भी था उस खसरे के उस हिस्से को कम्युटर के द्वारा बड़े झाड़ का जंगल दिखाया जा रहा था ।

हद ये है कि सोनसिंह की जमीन जिसका खसरा नम्बर 22/5 और रकबा 3.15 एकड़ है उस पर खसरा नम्बर 22 पर और भी पांच किसान हैं जिनका बंटाकन 22/1 से लेकर 22/6 तक है इसमे से एक बंटाकन सोनसिंह का भी है । सवाल ये उठता है कि जब इस बंटाकन के बाकी किसानों का पंजीयन हो गया तो फिर सोनसिंह का क्यों नहीं ? सवाल ये भी उठता है कि जब आज इस जमीन का बड़े झाड़ के जंगल होने के कारण पंजीयन नहीं हो पा रहा है तो फिर पिछले छह साल से कैसे पंजीयन हो रहा था और कैसे उस जमीन की पर्ची बनी हुई है ? और सबसे बड़ा सवाल तो सोनसिंह के सामने है कि वो अपने धान को यदि औने पौने बेच भी दे तो फिर कर्ज कैसे उतारेगा और बाकी खर्चे पूरे करेगा ?

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